ज्योतिषीदेश दुनिया

विजय दशमी के दिन , दुर्गा जी के हाथों में धारण किये जाने वाले सभी शस्त्रों व कुल देवी / देवता के साथ अपने घरों में भी पूजा करना चाहिये

कुलदेवता-कुलदेवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो उनको जीवन मै कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता। फिर धीरे धीरे समय गुजरता और

 विजय दशमी के दिन , दुर्गा जी के हाथों में धारण किये जाने वाले सभी शस्त्रों व कुल देवी / देवता के साथ अपने घरों में भी पूजा करना चाहिये

हमारे पूर्वजो ने अपने वंश- परिवार को बाहरी नकारात्मक उर्जाओ और उनसे उत्पन्न बाधाओं से रक्षा करने के लिए एक पारलौकिक शक्ति का कुलदेवी / कुलदेवता के रूप में पूजना शुरू किया। यह शक्ति उस वंश परिवार की उन्नति में नकारात्मक ऊर्जा को बाधाएं और विघ्न उत्पन करने से रोकती थी।
उस कुलदेवी/कुलदेवता का पूजन उस वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा बन गई।

वंश की वृद्धि ओर उन्नति के लिए यही पारलौकिक शक्ति की पूजा , किसी भी पूजन यज्ञ अनुष्ठान में “”कुलदेवताभ्यो नमः”” कह कर आज तक भी किया जाता है।

सामान्यतया कुलदेवी/देवता की पूजा वर्ष में दो बार दशहरा व होली में तो होती ही है इसके अलावा शादी- विवाह , संतानोत्पत्ति , झालर , मुंडन आदि अवसर पर भी इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं।
कई जगह तो विवाह के 4 फेरे मंडप में तथा शेष फेरे कुलदेवी देवता के सामने लिये जाने की परम्परा है।

हमारे सुरक्षा आवरण हैं कुलदेवी / कुलदेवता

कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा या नकारात्मक ऊर्जा को परिवार के किसी भी सदस्य पर प्रवेश से पहले ही उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारो और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं।
कुलदेवी ओर कुलदेव की प्रसन्नता न हो तो परिवार के मध्य बने हुए सेतु कार्य करना बंद कर देता है।
जिससे बाहरी बाधाये,अभिचार कर्म आदि नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा के ही परिवार तक पहुँचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है। यह सब कुल देवी देवता के पूजा से विमुख होने के कारण ही होता है।

कुलदेवी की उपेक्षा अथवा भूलने के कारण????-

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, विजातीयता पनपने, इसके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता/देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा कि उनके कुल देवता/देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है, इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू , अपने आपको आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।

कुलदेवता-कुलदेवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो उनको जीवन मै कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता। फिर धीरे धीरे समय गुजरता और कालचक्र बढता है तथा कुलदेवी /कुलदेवता की सुरक्षा चक्र हटता है
तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, बाहरी बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है , उन्नति रुकने लगती है , पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाता है तब ये समाधान के लिये तांत्रिक अवघड़ आदि के फेर में अपना समय और धन दोनों नष्ट करते रहते है। जो कि व्यर्थ होता है।

जिन घरो या परिवारों में उपरोक्त नकारात्मक प्रभाव दिखना शुरू हो जाता है ,उन परिवारों को विशेष ध्यान देना चाहिए ।
इस तरह के उत्पात कुलदेवी , कुलदेवता तथा पितृ देव के पूजन नही करने के कारण ही होते है ।

अतः सहपरिवार अपने बड़े बुजुर्गों व बच्चों के साथ कुल देवी देवता व शस्त्रों की पूजा अवश्य करें।

पण्डित मनोज शुक्ला महामाया मन्दिर रायपुर 7804922620

GAUTAM BEMTRA

Related Articles

Back to top button