इस दिन क्यों की जाती है वट वृक्ष की पूजा
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है।हर साल ग्राम परपोड़ा वार्ड नंबर 14 ,15,18 व 19 की राजपूत पारा की महिलाएं बरगद की पेड़ की पूजा करती उनकी परिक्रमा करती है और पेड़ के चारो ओर कलावा बांधती है। वे बरगद के पेड़ को जल, चावल और फूल चढ़ाते हैं, सिंदूर छिड़कते हैं, पेड़ के तने को सूती धागे से बांधते हैं और पवित्र बरगद के पेड़ की 108 बार परिक्रमा करते हैं.वह उपवास रखकर अगले दिन पूर्णिमा खत्म होने पर इसे तोड़ते है वट सावित्री पूजा का महत्व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत का महत्व करवा चौथ के समान ही है.
*इस दिन क्यों की जाती है वट वृक्ष की पूजा*
इस व्रत को लेकर शास्त्रों में कई धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं.उसमें से एक के अनुसार वट वृक्ष के नीचे ही अपने कठोर तप से पतिव्रता सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित किया था.जबकि एक अन्य मान्यता की मानें तो भगवान शिव के वरदान से ऋषि मार्कण्डेय को वट वृक्ष में भगवान विष्णु के बाल मुकुंद अवतार के दर्शन हुए थे.उसी दिन से वट वृक्ष की पूजा किये जाने का विधान है।
*वट सावित्री की पूजा करने से मिलेगा अखंड सुहाग का वरदान*
सनातन धर्म के ग्रंथ ब्रह्मवैवर्त पुराण व स्कंद पुराण के हवाले से बताया है कि वट सावित्री की पूजा व वटवृक्ष की परिक्रमा करने से सुहागिनों को अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख शांति व वैवाहिक जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं. पूजा के बाद भक्ति पूर्वक सत्यवान सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए. इससे परिवार पर आने वाली सभी बाधाएं दूर होती है तथा घर में सुख समृद्धि का वास होता है।