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प्यार में धोखा मिलने से परेशान हैं बच्चे तो कैसे करें देखभाल, जानें एक्सपर्ट की राय

बदलते वक्त के साथ लोगों के रहन सहन और खान-पान के साथ-साथ जीवन शैली में भी काफी बदलाव होता जा रहा है. यही नहीं, भागदौड़ की इस जिंदगी में इंसान जाने अंजाने में कई तरह की बीमारियों का शिकार होने लगा है, जिसका उसे पता ही नहीं चलता. कुछ ऐसी ही रिपोर्ट जिला गाजियाबाद में देखने को मिल रही है. दरअसल गाजियाबाद के जिला एमएमजी अस्पताल (District MMG Hospital) में अक्टूबर माह में तनाव में ग्रस्त कुल 420 छात्रों के केस आए थे, जिसमें से 10 फीसदी केस डिसोसिएटिव डिसऑर्डर के थे.बहरहाल, 420 में से 42 बच्‍चे डिसोसिएटिव डिसऑर्डर का शिकार हो रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि किसी छात्र को उसकी गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप होने का दुख है, तो किसी को एग्जाम में अच्छे नंबर लाने की टेंशन है. बता दें कि डिसऑर्डर में मरीज अपनी ही दुनिया में खो जाता है. अपनी बात किसी से भी साझा नहीं करता है. वहीं, किशोर और किशोरी इसका शिकार तेजी से बन जाते हैं. इनमें सोशल मीडिया से तेजी से बने रिश्ते और उन रिश्तो का उतनी ही तेजी से टूट जाना भी शामिल है. ऐसे में यह डिप्रेशन (Depression) का रूप ले लेता है. जिस कारण से छात्रों को सिर में दर्द रहता है, बुखार आ जाता है, चक्कर आते हैं और भूख नहीं लगती है.बच्चों को कैसे करें हैंडल?

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GHAZIABAD: प्यार में धोखा मिलने से परेशान हैं बच्चे तो कैसे करें देखभाल, जानें एक्सपर्ट की राय

Ghaziabad: प्यार में धोखा मिलने से परेशान हैं बच्चे तो कैसे करें देखभाल, जानें एक्सपर्ट की राय

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गाजियाबाद के छात्रों में डिसोसिएटिव डिसऑर्डर के मामले देखने को मिल रहे हैं. इस वजह से जिला अस्पतालों में मनोचिकित्सक के पास तनाव के मरीजों की संख्या बढ़ गई है. हैरानी की बात है कि किसी छात्र को गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप का दुख है, तो किसी को एग्जाम में अच्छे नंबर लाने की टेंशन है.

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रिपोर्ट- विशाल झा

गाजियाबाद. बदलते वक्त के साथ लोगों के रहन सहन और खान-पान के साथ-साथ जीवन शैली में भी काफी बदलाव होता जा रहा है. यही नहीं, भागदौड़ की इस जिंदगी में इंसान जाने अंजाने में कई तरह की बीमारियों का शिकार होने लगा है, जिसका उसे पता ही नहीं चलता. कुछ ऐसी ही रिपोर्ट जिला गाजियाबाद में देखने को मिल रही है. दरअसल गाजियाबाद के जिला एमएमजी अस्पताल (District MMG Hospital) में अक्टूबर माह में तनाव में ग्रस्त कुल 420 छात्रों के केस आए थे, जिसमें से 10 फीसदी केस डिसोसिएटिव डिसऑर्डर के थे.

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बहरहाल, 420 में से 42 बच्‍चे डिसोसिएटिव डिसऑर्डर का शिकार हो रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि किसी छात्र को उसकी गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप होने का दुख है, तो किसी को एग्जाम में अच्छे नंबर लाने की टेंशन है. बता दें कि डिसऑर्डर में मरीज अपनी ही दुनिया में खो जाता है. अपनी बात किसी से भी साझा नहीं करता है. वहीं, किशोर और किशोरी इसका शिकार तेजी से बन जाते हैं. इनमें सोशल मीडिया से तेजी से बने रिश्ते और उन रिश्तो का उतनी ही तेजी से टूट जाना भी शामिल है. ऐसे में यह डिप्रेशन (Depression) का रूप ले लेता है. जिस कारण से छात्रों को सिर में दर्द रहता है, बुखार आ जाता है, चक्कर आते हैं और भूख नहीं लगती है.

बच्चों को कैसे करें हैंडल?
News 18 Local से बात करते हुए गाजियाबाद के मनोचिकित्सक डॉ. आरएस का कहना है कि ऐसे समय में मरीज को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए और उसके अंदर चल रही बातों को समझने की कोशिश करनी चाहिए. मरीज को पॉजिटिव वीडियो देखने चाहिए. अच्छा आहार लेना चाहिए और अच्छी नींद भी जरूरी है. साथ ही साथ अभिभावकों को भी बच्चों के बदले व्यवहार की मॉनिटरिंग करते रहनी चाहिए. इस दौरान अभिभावक अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें, ताकि वह आपसे अपने मन की बात साझा करने में झिझके नहीं. जबकि बच्चों पर अपने फैसले थोपने से बचना चाहिए. इससे वे तनाव में बड़ी जल्दी आती है. साथ डॉक्‍टर ने बताया कि बच्चों से 24 घंटे में कम से कम एक बार बात जरूर करें. इस दौरान उनके व्यवहार में सकारात्मक बातों को जोड़ने की कोशिश करें.

Sunil Namdeo

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