शिक्षा

*राग, द्वेष, ईर्षा, पाप, लोभ, काम, मोह को मार अपने अन्दर उत्तम उत्तम गुणों का करे विकास*

“संसार में कुछ लोग अच्छे स्वभाव के होते हैं। वे पूर्व जन्म के संस्कारी होते हैं।” “अपने अच्छे संस्कारों के कारण वे अपने दोषों को धीरे-धीरे दूर करते जाते हैं, और अपने अन्दर उत्तम उत्तम गुणों का विकास करते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में सफलता को प्राप्त करते हैं।”

“कुछ पूर्व जन्म के कुसंस्कारी लोग भी होते हैं।”वे जन्म से ही लड़ाई झगड़ा ईर्ष्या द्वेष अभिमान आदि दोषों से ग्रस्त होते हैं। परंतु वे पूर्व संस्कारों के कारण कुछ क्रियाशील (Active) भी होते हैं। *”उनकी क्रियाशीलता के कारण वे भी अपने जीवन में उन्नति करते हैं। वे भी अनेक गुणों को धारण करते हैं।” “परंतु उनमें विद्यमान कुसंस्कारों तथा अभिमान आदि दोषों के कारण, वे दूसरों को परेशान भी करते रहते हैं। सब का बॉस बनकर रहने की इच्छा रखते हैं, और यथाशक्ति दूसरों को दबाकर रखते हैं।” “ऐसे व्यक्ति जीवन में विफलता को प्राप्त करते हैं।”

परंतु संसार का यह नियम है, कि “किसी पत्थर को कितना भी ऊंचा उछाला जाए, अंत में वह नीचे अवश्य ही आता है।” “इसी प्रकार से कोई व्यक्ति जीवन में कितनी भी उन्नति कर ले, वह सर्वशक्तिमान तो है नहीं। वह भी उन्नति के शिखर पर सदा तो रह नहीं सकता। अंत में एक न एक दिन तो उसे भी नीचे आना ही पड़ता है।” “जैसे जैसे शरीर में वृद्धावस्था आती है, तो उसकी क्षमता भी कम होने लगती है। उसके जीवन में भी उतार आने लगता है।”

यह उतार और चढ़ाव की प्रक्रिया प्रायः सब लोगों के जीवन में होती है। *”जो व्यक्ति पूर्व जन्म का संस्कारी होता है, जब उसके जीवन में उतार आता है, क्षमताओं में योग्यताओं में गुणों में कुछ कमी आने लगती है, तो वह जीवन के उस स्वाभाविक सत्य को स्वीकार कर लेता है, वह दुखी नहीं होता, और आनंद से जीवन जीता है।”

“परंतु जो कुसंस्कारी व्यक्ति होता है, जो सदा दूसरों को दबाकर रखना चाहता है। सदा सबका बॉस बनकर रहना चाहता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में जब उतार आता है, तो वह बहुत दुखी होता है।” “अपने कुसंस्कारों के कारण जीवन भर तो वह दूसरों को दुख देता रहा। परंतु वृद्धावस्था में उसकी योग्यता क्षमता आदि कम हो जाने के कारण, अब वह चाहते हुए भी दूसरों को दबा नहीं पाता, दुख नहीं दे पाता।” “तब उसे बहुत छटपटाहट होती है। तब उसकी स्थिति बहुत ख़राब हो जाती है।”*l

“ऐसी ख़राब स्थिति का अनुभव आपको अपनी वृद्धावस्था में न करना पड़े,”* इसके लिए यही अच्छा है, कि *”आप अपने स्वभाव को अच्छा बनाएं। संयम से रहें, अपनी सीमा में रहें। अति अभिमानी न बनें। सबका बॉस बनने और सबको दबाकर रखने की इच्छा न करें। अपने अंदर उत्तम गुणों का विकास करें।” “आपकी सभी योग्यताओं क्षमताओं का आदि मूल कारण ईश्वर को मानें।” “ऐसा करने से आपकी वृद्धावस्था में यह समस्या नहीं आएगी, और आप आनंदपूर्वक पूरा जीवन जिएंगे।”

—- *ज्योतिष कुमार रायपुर छत्तीसगढ़ ।*

GAUTAM BEMTRA

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